कुछ पल तो इस से और उधार ले लें,
मिल जाये गर तेरे गेसुओं की घनी छाव,
दयारे-गैर में अब चैन नहीं है एक पल,
उफक में डूबते सूरज से तेरी खैर ले लें,
तमाम उम्र का हिसाब मांगती है हयात,
कुछ तुझसे अपनी महरूमियों का हिसाब ले लें,
अहसास को मन के दर्पण में प्रतिबिंबित कर प्रस्तुत करने का प्रयास..(Lyrics under this blog is protected by India Copyright Act 1957 all rights reserved with owner of the blog)


तुम ना जाने अंधेरों में, कहां गुम हो गये....
वक्त बेचारा परेशान,
तुम्हें ढूँढता रहा.
वो रात जैसे ,
कयामत ले के आयी थी....
सवेरा मानो,
ख़ामोशियों में खो गया था....
हर तरफ़ सिसकियां थी,
धड़कन थम सी गयी थी,
किसी पत्ते ने गिर कर
किसी फ़ूल को मसल दिया,
किसी तूफ़ान ने आकर
साहिल पे डुबो दिया।
वो दूर रोशनी का दिया,
जिसे देख कोई वर्षों जिया
आज अंधेरों में गुम हो गया।
किसी कि पलकों में बसा ख़्वाब,
यूं ही टूट कर बिखर गया।
तुम ना जाने अंधेरों में,
कहां गुम हो गये....
वक्त बेचारा परेशान,
तुम्हें ढूँढता रहा.

रात रूठी है यहां,
नींद कहां आयेगी..
आओ बैठो,
भूली यादों को समेटे,
कुछ बात करें।
उन बादलों को तलाशें
थोड़ा भीग लें,
उन बादलों में
अश्कों का पानी बाकी है।
उस राह में चलो,
थोड़ा घूम लें....
उस राह में,
तेरे कदमों के निशां बांकी हैं।
इन ठहरी सहमी सांस,
इन धड़कनों को सुनो....
इन में बसा एक अरमान,
अभी बांकी है।
दर्द आंख़ो से पढ़ो,
शब्द जुबा पर नहीं आते....
इस दिल में गहरे,
जख़्मों के निशा बांकी है।
दरीचों से झांको,
देखो दूर तक...
वहां गुजरे हुए,
वक्त के निशा बांकी है।
टकरा के साहिल से,

फासला हो पर
इस कदर ना हो....
दूर हो के भी कोई,
इस कदर करीब ना हो।
चाहो किसी को
ना इस कदर...
कि तेरे चाहने की,
उसको को खबर ना हो।
गुमसुम दरीचों से
झाँकों ना इस तरह ....
कि तुम आओ भी और,
उसको को ख़बर ना हो।
अपनी बेबसी में यूं
सिसका ना करो....
कि तेरी चश्मे-पुर-आब का,
उस पर असर ना हो।
औराक के पन्नों में
गज़ल बन कर ना रहो..
कि तुम्हें पढ़े कोई और,
तुम्ही को ख़बर ना हो।
खरीद दार बेकरार है
ना काबिले-गिरफ्त हैं
(जापान में सोनामी के कहर से पीड़ितों की अन्तर्दशा को प्रतिबिंबित करते हुए समर्पित )
रह जायेंगी दास्ताँ गुजरे जमाने की
हम रहें ना रहें।
लहरें समन्दर में उठेंगी,
रेत में बसे शहर यूं ही बह जायेंगें
हम रहें ना रहें।
कही खामोशियां सिमटी होंगीं
कहीं तूफ़ानों के साये होंगें,
ये दिन यूं ही ढल जायेगा,
ये रात यूं ही सुलायेगी,
हम रहें ना रहें।
गर्मियों में झुलसी धरती को
ये बारिसें फ़िर भिगोयेंगी,
उजड़े चमन में बहारें लौट कर आयेंगी,
खिलेंगे फ़ूल, कलियां फ़िर मुस्करायेंगी
हम रहें ना रहें।
सर्दियों में दूर तक फ़ैली होगी बर्फ़ की चादर,
रात में चांदनी यूं ही उजाला फ़हरायेगी,
सर्द रातों में हर तरफ़ विरानगी होगी,
शोख हवा यूं ही छू के गुजर जायेगी,
हम रहें ना रहें।
उदास लम्हों के बाद,
फ़िर ख़ुशी के साये होंगें।
गहरी काली रात में,
वही ख़्वाब वही अहसास होंगें,
लोग बिछुड़ेगें मिलेंगें, ख़ुशी की बात होगी,
मौत के बाद फ़िर जिन्दगी मुस्करायेगी,
हम रहें ना रहें।


दर्द देने लगी फिर वो
धुंधली सी याद..
माजी से जैसे
सदाए दे रहा हो कोई..
निगाहें दूर तक गयी
और ठहर गयी….
उस सिम्त में जैसे,
उसका खोया हुआ अक्स,
आज भी ठहरा हो...
खला में कुछ भी नहीं...
या तो सिर्फ रेगज़ार है,
या है दस्त की वुसअतें...
फिर भी जहन में
आज भी ताज़ा है,
वो खिलखिलाती हँसी....
आवाज़े-बाज़गश्त ,
आज भी सूनी रात में,
जगा देती है अक्सर...
ऐसा लगता है जैसे,
वो कहीं आस-पास है..........

अब भी बरसते हैं बादल
पर वो बात कहां,
नीला-2 है अम्बर
पर वो आफ़ताब कहां,
है वही चमन, वही फसले गुल
पर तेरे खुशबू से महके
वो सुर्ख गुलाब कहां,
अब भी चलती हैं
सर्द हवाएँ बहुत
पर उन में ठिठुरते
वो ज़ज़्बात कहां,
आज भी सुबह होती है
दिन निकलता है
पर वो हसीन शाम कहां,
रोज़ होती है अब भी रात
पर वो हँसी ख्वाब कहां,
हर रोज जलते हैं
यादों के लाखों दिये
पर वो रोशन चिराग कहां……
सुबह की गोद में दम तोड़ती रात की सांसें,
शाम की गोद में सो जाता सूरज,
ये सिलसिला चल रहा वर्षों से।
सूरज के निकलते ही रात कहीं खो जाती
सूरज सारे दिन उसे तलाशता रहता
थक के शाम की गोद में सो जाता सूरज
उसे तलाशते तभी आ जाती रात
ये सिलसिला चल रहा वर्षों से।
निष्ठुर प्रक्रति को उनका मिलन नही मंजूर
उनकी इन्तज़ारी, बेक़रारी, जजबातों से
उसे क्या लेना- देना
उसे तो वक्त का दस्तूर निभाना है
रात को अंधेरे से
और सूरज को सवेरे से मिलाना है।

एक दूसरे से कितना मिलते हैं,
आसमां में हों तो जमी से
ज़मी में हों तो आसमां से
मिलने को तड़फ़ते हैं।
बादल हवा से पानी की बुंदों को बीन
आशियाना बनाता है,
जिन्दगी हवा में बिखरी यादों
को बीन के आशियाना बनाती है,
बादलों के आगोश में दरिया है
जिन्दगी आंखों से दरिया बहाती है,
तेज हवा का झौंका
बादलों कहीं ले जाता है,
वक्त की आंधी में
जिन्दगी कहीं खो जाती है।
आदमी, आदमी को जानता है,
पर उस के रिश्ते पुराने हो गये,
पहले मिलते थे, बैठते थे एक जगह
पर अब अलग-अलग ठिकाने हो गये,
किसी से मिल के खुश होना,
लिपट-लिपट के रोना अब कहां,
ये तो किस्से पुराने हो गये,
किसी को किसी से मिलने का
वक्त कहां, अब तो
ना मिलने के बहाने हो गये,
किसी का दर्द किसी के ज़ज़्बात
कौन समझेगा यहां,
खुद के तड़फ़ने के फ़साने हो गये,
आदमी, आदमी को जानता है,
इठलाती, छ्नछनाती, 
एक हलचल सी है,
लगता है कोई आया है....
हवा गुनगुनाने लगी है
कोई फूल फिर मुस्कराया है.
लगता है कोई आया है....
खामोश हैं दर्द की वुसअतें1,
खामोश हैं शेरिश-ए-तूफां2,
हर सिम्त में है हसरत-ए-तब्बसुम3,
लगता है कोई आया है.....
उठा है दस्त-ए-दुआ4 आज भी,
शायद हाकिम को खबर ये है,
दिख रहे हैं सहरा पे किसी के नक़्शे-पा5,
लगता है कोई आया है......
1.विस्तार,2.तूफ़ान का उपद्रव,3.मुस्कराने की इच्छा, 4.दुआ के लिए उठा हाथ,5.क़दमों के निशान