Friday, February 25, 2011

आँख मिचोली...


सुबह की गोद में दम तोड़ती रात की सांसें,

शाम की गोद में सो जाता सूरज,

ये सिलसिला चल रहा वर्षों से।

सूरज के निकलते ही रात कहीं खो जाती

सूरज सारे दिन उसे तलाशता रहता

थक के शाम की गोद में सो जाता सूरज

उसे तलाशते तभी आ जाती रात

ये सिलसिला चल रहा वर्षों से।

निष्ठुर प्रक्रति को उनका मिलन नही मंजूर

उनकी इन्तज़ारी, बेक़रारी, जजबातों से

उसे क्या लेना- देना

उसे तो वक्त का दस्तूर निभाना है

रात को अंधेरे से

और सूरज को सवेरे से मिलाना है।

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