
दर्द देने लगी फिर वो
धुंधली सी याद..
माजी से जैसे
सदाए दे रहा हो कोई..
निगाहें दूर तक गयी
और ठहर गयी….
उस सिम्त में जैसे,
उसका खोया हुआ अक्स,
आज भी ठहरा हो...
खला में कुछ भी नहीं...
या तो सिर्फ रेगज़ार है,
या है दस्त की वुसअतें...
फिर भी जहन में
आज भी ताज़ा है,
वो खिलखिलाती हँसी....
आवाज़े-बाज़गश्त ,
आज भी सूनी रात में,
जगा देती है अक्सर...
ऐसा लगता है जैसे,
वो कहीं आस-पास है..........
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