
बिखरे हुए हैं ख़यालात
खाली हैं ये हाथ,
पास कुछ भी नहीं है
पास कुछ भी नहीं है....
पास कुछ भी नहीं है....
ख़ामोशी बयां कर रही है ताबिश
अश्क ही अश्क हैं
अल्फाज़ नहीं हैं...
वो जा रहा है देखो
कितने करीब से,
कोई चाहता है उसको,
ये अहसास नहीं है...
एक लौ है जो सीने में
आज भी है कायम....
एक वो है की उसे,
कुछ इल्म नहीं है......
बहुत ही मार्मिक रचना है ये....ऐसे ही लिखते रहो..हमारे पास तो अहसास है पर बयान करने को अल्फाज़ नहीं हैं.
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