Wednesday, June 1, 2011

यकीन....


तू ज़ुद- फरामोश नहीं है, मुझे है ये यकीन,
तेरे घर पे आज भी चराग-ए-हिज्र जलते हैं.

खामोश तू रहता है रोजो-शब,
अश्क तेरे, अक्सर मेरी ही बात करते हैं.

अकेलेपन की अजीयत से तू परेशां न हो,
ख्वाब मेरे, तेरे संग करवटें बदलते हैं...

जिस जगह पर तू मिला था मुझे बरसों पहले
आज उसी जगह से तेरे मेरे रास्ते बदलते हैं.....

आंसुओं से और कहानी मत लिख,
करीब आ, आज तकदीर का रुख बदलते हैं...

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ज़ुद- फरामोश- जल्दी भूलने वाला
चराग-ए-हिज्र - बिरह के चराग,
रोजो-शब-दिन और रात
अजीयत- यातना.

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