Friday, April 1, 2011

बयान किस से करें....

खरीद दार बेकरार है
पर किस तरह ये जिंदगी
नीलाम है,
बयान किस से करें....

सुबह की उम्मीद में ,
जागी है रात तनहा,
अब फिर हो गयी है शाम,
बयान किस से करें..


गहरे जख्म ,
भर गए लेकिन,
बचे हैं उन के निशां,
बयान किस से करें....

चली हैं आंधियां
वक्त की ऐसी,
ढहे हैं पक्के मकान,
बयान किस से करें..

साहिल पे पहुँचते ही,
मौजों ने डूबा दी
कश्ती,
बचे हैं आज भी,
तूफानों के निशां,
बयान किस से करें..

तारीकी में,
साया तक नज़र नहीं आता,
ढूँढ़ते फिर रहे,
फिर भी,
तेरे क़दमों के निशां,
बयान किस से
करें..

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