Monday, May 30, 2011

ना जाने कब तक......

ना जाने कब तक जगाएगी ये रात तनहा,
ना जाने कब तक इस चादनी में जलना होगा.......

ना जाने कब तक नफस-नफस का हिसाब लेगी हयात
ना जाने कब तक ये कारोबार और करना होगा...

ना जाने कब तक तेरी आँखों से घटा बरसेगी,
ना जाने कब तक आसमान को और रोना होगा.....

ना जाने कब तक तेरी ओक झलक पाने को तरसेगी निगाहें,
ना जाने कब तक तेरी जुस्तजू में मरना होना होगा....

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