Friday, April 15, 2011

तुम ना जाने कहां गुम हो गये....

तुम ना जाने अंधेरों में,

कहां गुम हो गये....

वक्त बेचारा परेशान,

तुम्हें ढूँढता रहा.

वो रात जैसे ,

कयामत ले के आयी थी....

सवेरा मानो,

ख़ामोशियों में खो गया था....

हर तरफ़ सिसकियां थी,

धड़कन थम सी गयी थी,

किसी पत्ते ने गिर कर

किसी फ़ूल को मसल दिया,

किसी तूफ़ान ने आकर

साहिल पे डुबो दिया।

वो दूर रोशनी का दिया,

जिसे देख कोई वर्षों जिया

आज अंधेरों में गुम हो गया।

किसी कि पलकों में बसा ख़्वाब,

यूं ही टूट कर बिखर गया।

तुम ना जाने अंधेरों में,

कहां गुम हो गये....

वक्त बेचारा परेशान,

तुम्हें ढूँढता रहा.

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