ना काबिले-गिरफ्त हैंये जज्बात क्या करें,
कितनी हसीं है ये मुलाकात
सवालात क्या करें......
तुम मिल गए हो फिर से
ये यकीं नहीं आता,
पर कितने बदले हैं आज
ये हालात क्या करें ...
कितने अरमान सजोये थे
इस मुलाकात के लिए,
कहीं यूँ ही ना बीत जाएँ,
ये हंसीं लम्हात क्या करें....
शादाब हवा वैसे भी
यूँ छेड़ रही है....
याद आ ना जाए फिर वो
गुजरी बात क्या करें...
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