Friday, August 12, 2011

ये जिंदगी...

ना जाने फिर कहाँ ले के जाए ये जिंदगी
कुछ पल तो इस से और उधार ले लें,

मिल जाये गर तेरे गेसुओं की घनी छाव,
बस एक मीठी सी नींद आँखों में ले लें,

दयारे-गैर में अब चैन नहीं है एक पल,
उफक में डूबते सूरज से तेरी खैर ले लें,

तमाम उम्र का हिसाब मांगती है हयात,
तुझसे भी कुछ इसके सवालों का जवाब ले लें.

कुछ तो तकदीर ने महरूम रखा मुझको,
कुछ तुझसे अपनी महरूमियों का हिसाब ले लें,

Monday, June 20, 2011

दुआ

मेरी बज़्म तो तेरे नाम से ही रोशन हुई जाती है,
शमा तो जलती है दस्तूर निभाने के लिए.

नज़्म मेरी जुबान तक आ के होटो पे ठहर जाती है,
तस्सवर तो तेरा बस आँखों से बयां होता है,

इबादत होती है शब-ए-रोज़, सर-ब-सजदा ,
हर मुक़द्दस दुआ में बस तेरा ही जिक्र होता है.

Wednesday, June 1, 2011

यकीन....


तू ज़ुद- फरामोश नहीं है, मुझे है ये यकीन,
तेरे घर पे आज भी चराग-ए-हिज्र जलते हैं.

खामोश तू रहता है रोजो-शब,
अश्क तेरे, अक्सर मेरी ही बात करते हैं.

अकेलेपन की अजीयत से तू परेशां न हो,
ख्वाब मेरे, तेरे संग करवटें बदलते हैं...

जिस जगह पर तू मिला था मुझे बरसों पहले
आज उसी जगह से तेरे मेरे रास्ते बदलते हैं.....

आंसुओं से और कहानी मत लिख,
करीब आ, आज तकदीर का रुख बदलते हैं...

*****************************************************
ज़ुद- फरामोश- जल्दी भूलने वाला
चराग-ए-हिज्र - बिरह के चराग,
रोजो-शब-दिन और रात
अजीयत- यातना.

Monday, May 30, 2011

ना जाने कब तक......

ना जाने कब तक जगाएगी ये रात तनहा,
ना जाने कब तक इस चादनी में जलना होगा.......

ना जाने कब तक नफस-नफस का हिसाब लेगी हयात
ना जाने कब तक ये कारोबार और करना होगा...

ना जाने कब तक तेरी आँखों से घटा बरसेगी,
ना जाने कब तक आसमान को और रोना होगा.....

ना जाने कब तक तेरी ओक झलक पाने को तरसेगी निगाहें,
ना जाने कब तक तेरी जुस्तजू में मरना होना होगा....

Wednesday, May 11, 2011

तेरे शहर पे आज

कुछ अजीब सा हाल है,
तेरे शहर का आज,
बादल भी बहुत प्यासा है,
तेरे शहर का आज.

उस मोड़ पे छोड़ आया हूँ,
कुछ यादों के पैरहन,
बेनकाब खड़ी है हयात,
तेरे शहर पे आज.

इज्जत-ओ-दौलत-ओ-शोहरत,
सब लगा दी है दाँव पे,
नीलाम हुई है हयात,
तेरे शहर पे आज.....

Friday, April 15, 2011

तुम ना जाने कहां गुम हो गये....

तुम ना जाने अंधेरों में,

कहां गुम हो गये....

वक्त बेचारा परेशान,

तुम्हें ढूँढता रहा.

वो रात जैसे ,

कयामत ले के आयी थी....

सवेरा मानो,

ख़ामोशियों में खो गया था....

हर तरफ़ सिसकियां थी,

धड़कन थम सी गयी थी,

किसी पत्ते ने गिर कर

किसी फ़ूल को मसल दिया,

किसी तूफ़ान ने आकर

साहिल पे डुबो दिया।

वो दूर रोशनी का दिया,

जिसे देख कोई वर्षों जिया

आज अंधेरों में गुम हो गया।

किसी कि पलकों में बसा ख़्वाब,

यूं ही टूट कर बिखर गया।

तुम ना जाने अंधेरों में,

कहां गुम हो गये....

वक्त बेचारा परेशान,

तुम्हें ढूँढता रहा.

Thursday, April 14, 2011

इबादत ........

यूँ तो मंदिरों में आज भी,

जल रहे हैं दिये ,

हजारों की भीड़ में वो,

दस्ते-दुआ1 याद है।

उसके दयार पर,

मुख़्तसर2 बातें करो,

उसे मंज़र वो,

चश्मे-पुर-आब3 याद है।

हमने उस को सजदे,

बहुत बेसदा4 किये,

उसे वो बेज़ा5

मतालब6 याद है।


1-प्रार्थना का हाथ, 2-संक्षिप्त, 3-आंसू भरी आंखे, 4-बिना आवाज,

5- बेकार, 6- मांग