Saturday, March 26, 2011

तुम फिर मिले...

ना काबिले-गिरफ्त हैं
ये जज्बात क्या करें,

कितनी हसीं है ये मुलाकात
सवालात क्या करें......

तुम मिल गए हो फिर से
ये यकीं नहीं आता,

पर कितने बदले हैं आज
ये हालात क्या करें ...

कितने अरमान सजोये थे
इस मुलाकात के लिए,

कहीं यूँ ही ना बीत जाएँ,
ये हंसीं लम्हात क्या करें....

शादाब हवा वैसे भी
यूँ छेड़ रही है....

याद ना जाए फिर वो
गुजरी बात क्या करें...

Monday, March 21, 2011

लम्हे

ये लम्हे भी
अजीब होते हैं …
कभी-कभी,
पंछी
से,
एक पल में ही
उड़ जाते हैं…..

कभी-कभी
बर्फ
से,
कुहसार पे,
जम जाते हैं….

कभी-कभी,
एक लम्हे के सहारे ,

जिन्दगी गुज़र जाती है……

कभी-कभी,
इसके एक लम्स से,

जिंदगी की तस्वीर
बदल जाती है...

कुछ लम्हे
जिंदगी की किताब में,

कैद हो

खूबसूरत तरन्नुम

बन जाते हैं…..

कुछ
लम्हे यूँ ही,
अश्क बन बह जाते हैं…..
कुछ लम्हे साहिल से
टकरा कर,

कौश--कुज़ह बन
जाते हैं….
तो
कुछ साहिल से
टकरा कर,

यूँ ही बिखर जाते हैं.....

Saturday, March 12, 2011

अंतर्व्यथा

(जापान में सोनामी के कहर से पीड़ितों की अन्तर्दशा को प्रतिबिंबित करते हुए समर्पित )

रह जायेंगी दास्ताँ गुजरे जमाने की

हम रहें ना रहें।

लहरें समन्दर में उठेंगी,

रेत में बसे शहर यूं ही बह जायेंगें

हम रहें ना रहें।

कही खामोशियां सिमटी होंगीं

कहीं तूफ़ानों के साये होंगें,

ये दिन यूं ही ढल जायेगा,

ये रात यूं ही सुलायेगी,

हम रहें ना रहें।

गर्मियों में झुलसी धरती को

ये बारिसें फ़िर भिगोयेंगी,

उजड़े चमन में बहारें लौट कर आयेंगी,

खिलेंगे फ़ूल, कलियां फ़िर मुस्करायेंगी

हम रहें ना रहें।

सर्दियों में दूर तक फ़ैली होगी बर्फ़ की चादर,

रात में चांदनी यूं ही उजाला फ़हरायेगी,

सर्द रातों में हर तरफ़ विरानगी होगी,

शोख हवा यूं ही छू के गुजर जायेगी,

हम रहें ना रहें।

उदास लम्हों के बाद,

फ़िर ख़ुशी के साये होंगें।

गहरी काली रात में,

वही ख़्वाब वही अहसास होंगें,

लोग बिछुड़ेगें मिलेंगें, ख़ुशी की बात होगी,

मौत के बाद फ़िर जिन्दगी मुस्करायेगी,

हम रहें ना रहें।

Friday, March 11, 2011

दीदार

वो उलझी सी लट

तेरे बाल की,

कयामत सी लाली

तेरे रुखसार की,

हवा भी ठिठुर के

कुछ यूं थम गयी

खबर जब सुनी

तेरे दीदार की,

वो क्या था, क्या हुआ,

अजब हो गया

खिलने लगी कलियां

उजड़े गुलज़ार की,

तुझे छुआ तो जैसे

साँसें थम गयी

घड़ियां खत्म हुई

जो तेरे इन्तजार की।

Thursday, March 10, 2011

खालीपन

बिखरे हुए हैं ख़यालात
खाली हैं ये हाथ,
पास कुछ भी नहीं है
पास कुछ भी नहीं है....

ख़ामोशी बयां कर रही है
ताबिश
अश्क ही अश्क हैं
अल्फाज़ नहीं हैं...

वो जा रहा है देखो
कितने करीब से,
कोई चाहता है उसको,
ये अहसास नहीं है...

एक लौ है जो सीने में
आज भी है कायम....
एक वो है की उसे,
कुछ इल्म नहीं है......

Friday, March 4, 2011

मुलाक़ात

आज फिर,
देख कर उसको
इस कदर करीब से,


दफअतन फ़ासलों
का अहसास हुआ....

उफ़क में फिर
तलाशने लगी,
सूनी निगाहें वो
माज़ी के मंज़र..

दूर तक कुछ
नज़र नहीं आया....
बस सहमे सहमे से जज़बात
खला में बिखरे दिखे....

आज वो अश्क भी नहीं जो,
ख़ामोशी को बयां करें....
बस एक दर्द की चुभन है....

मुझे मालूम है आज फिर,
ये बेख्वाब रात
बहुत सताएगी,

फिर मेरे वजूद को
झंकझोर देगी
वो आवाज़ बाज़गश्त

और ये तनहाई
फिर रुलाएगी....

Thursday, March 3, 2011

अनुभूति

दर्द देने लगी फिर वो

धुंधली सी याद..

माजी से जैसे

सदाए दे रहा हो कोई..

निगाहें दूर तक गयी

और ठहर गयी….

उस सिम्त में जैसे,

उसका खोया हुआ अक्स,

आज भी ठहरा हो...

खला में कुछ भी नहीं...

या तो सिर्फ रेगज़ार है,

या है दस्त की वुसअतें...

फिर भी जहन में

आज भी ताज़ा है,

वो खिलखिलाती हँसी....

आवाज़े-बाज़गश्त ,

आज भी सूनी रात में,

जगा देती है अक्सर...

ऐसा लगता है जैसे,

वो कहीं आस-पास है..........