Monday, May 30, 2011

ना जाने कब तक......

ना जाने कब तक जगाएगी ये रात तनहा,
ना जाने कब तक इस चादनी में जलना होगा.......

ना जाने कब तक नफस-नफस का हिसाब लेगी हयात
ना जाने कब तक ये कारोबार और करना होगा...

ना जाने कब तक तेरी आँखों से घटा बरसेगी,
ना जाने कब तक आसमान को और रोना होगा.....

ना जाने कब तक तेरी ओक झलक पाने को तरसेगी निगाहें,
ना जाने कब तक तेरी जुस्तजू में मरना होना होगा....

Wednesday, May 11, 2011

तेरे शहर पे आज

कुछ अजीब सा हाल है,
तेरे शहर का आज,
बादल भी बहुत प्यासा है,
तेरे शहर का आज.

उस मोड़ पे छोड़ आया हूँ,
कुछ यादों के पैरहन,
बेनकाब खड़ी है हयात,
तेरे शहर पे आज.

इज्जत-ओ-दौलत-ओ-शोहरत,
सब लगा दी है दाँव पे,
नीलाम हुई है हयात,
तेरे शहर पे आज.....