Monday, June 20, 2011

दुआ

मेरी बज़्म तो तेरे नाम से ही रोशन हुई जाती है,
शमा तो जलती है दस्तूर निभाने के लिए.

नज़्म मेरी जुबान तक आ के होटो पे ठहर जाती है,
तस्सवर तो तेरा बस आँखों से बयां होता है,

इबादत होती है शब-ए-रोज़, सर-ब-सजदा ,
हर मुक़द्दस दुआ में बस तेरा ही जिक्र होता है.

Wednesday, June 1, 2011

यकीन....


तू ज़ुद- फरामोश नहीं है, मुझे है ये यकीन,
तेरे घर पे आज भी चराग-ए-हिज्र जलते हैं.

खामोश तू रहता है रोजो-शब,
अश्क तेरे, अक्सर मेरी ही बात करते हैं.

अकेलेपन की अजीयत से तू परेशां न हो,
ख्वाब मेरे, तेरे संग करवटें बदलते हैं...

जिस जगह पर तू मिला था मुझे बरसों पहले
आज उसी जगह से तेरे मेरे रास्ते बदलते हैं.....

आंसुओं से और कहानी मत लिख,
करीब आ, आज तकदीर का रुख बदलते हैं...

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ज़ुद- फरामोश- जल्दी भूलने वाला
चराग-ए-हिज्र - बिरह के चराग,
रोजो-शब-दिन और रात
अजीयत- यातना.